बाजार की इस कमजोरी का सबसे बड़ा कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की लगातार बिकवाली है। विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से भारी मात्रा में पैसा निकालकर अन्य बाजारों का रुख कर रहे हैं। विशेष रूप से आईटी (IT), एफएमसीजी (FMCG), और हेल्थकेयर जैसे मजबूत सेक्टरों में सबसे ज्यादा दबाव देखा गया है।
1. विदेशी निवेशकों (FIIs) के पलायन की वजह
विदेशी निवेशकों के पीछे हटने के पीछे तीन प्रमुख कारण नजर आ रहे हैं:
-
ग्लोबल रिटर्न का आकर्षण: 2025 में भारतीय बाजार ने उम्मीद के मुताबिक रिटर्न नहीं दिया। इसके विपरीत चीन, अमेरिका और जापान जैसे बाजारों ने निवेशकों को बेहतर मुनाफा दिया, जिससे ग्लोबल फंड्स वहां शिफ्ट हो रहे हैं।
-
मजबूत डॉलर: अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में उतार-चढ़ाव ने उभरते बाजारों (Emerging Markets) के लिए जोखिम बढ़ा दिया है।
-
महंगा वैल्यूएशन: कई विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय शेयरों की कीमतें उनकी कमाई (Earnings) के मुकाबले काफी ज्यादा हो गई हैं, जिससे मुनाफावसूली का दबाव बढ़ गया है।
2. IPO बाजार ने सोखा सेकेंडरी मार्केट का पैसा
एक दिलचस्प ट्रेंड यह भी रहा कि इस साल IPOs की बाढ़ आई। विदेशी और घरेलू निवेशकों ने सेकेंडरी मार्केट (पुराने शेयर) को बेचने या वहां नया पैसा न लगाने के बजाय, उसे नए आईपीओ में निवेश किया। इससे मुख्य बाजार में लिक्विडिटी (नकदी) की कमी हो गई और मिडकैप व स्मॉलकैप शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई।
3. घरेलू मोर्चे पर स्थिति
हालांकि, म्यूचुअल फंड्स में SIP के जरिए पैसा आना जारी है, लेकिन यह बिकवाली के दबाव को पूरी तरह संतुलित नहीं कर पा रहा है। घरेलू निवेशक अब अधिक सतर्क हो गए हैं और हर गिरावट पर खरीदारी करने के बजाय बाजार के स्थिर होने का इंतजार कर रहे हैं।
4. 2026 के लिए निवेश रणनीति: क्या करें निवेशक?
विशेषज्ञों के अनुसार, 2026 का साल 'चुनकर निवेश' (Selective Investment) करने का होगा। निवेशकों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
-
सेक्टर पर नजर: बैंकिंग (खासकर सरकारी बैंक), रियल एस्टेट और टेलीकॉम सेक्टर में लंबी अवधि के लिए मजबूती दिख रही है। आईटी शेयरों में गिरावट पर धीरे-धीरे खरीदारी की जा सकती है।
-
घबराकर न बेचें: बाजार में गिरावट निवेश का अवसर भी होती है। यदि आपकी कंपनी के फंडामेंटल्स मजबूत हैं, तो पैनिक सेलिंग (घबराहट में बेचना) से बचें।
-
लंबी अवधि का नजरिया: बाजार की छोटी अवधि की उठा-पटक से बचने के लिए 3-5 साल का लक्ष्य रखकर चलें।
निष्कर्ष: भारतीय बाजार इस समय एक 'करेक्शन' के दौर से गुजर रहा है। हालांकि अल्पावधि में झटके लग सकते हैं, लेकिन देश की मजबूत आर्थिक बुनियाद को देखते हुए विशेषज्ञ इसे लंबी अवधि के लिए एक स्वस्थ बदलाव मान रहे हैं।