नागपुर न्यूज डेस्क: राज्य सरकार द्वारा एपीएमसी की जांच के लिए एसआईटी गठित करने के फैसले को समिति के अध्यक्ष और संचालक मंडल ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। सुनवाई के दौरान सरकार के वकील ने इस कदम को सही ठहराया, जबकि याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि राज्य सरकार को ऐसा आदेश देने का अधिकार ही नहीं है। लंबे तर्क-वितर्क के बाद कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया।
सरकार की ओर से मुख्य सरकारी वकील देवेन चौहान ने कहा कि एपीएमसी मुश्किल वक्त में राज्य सरकार से वित्तीय मदद की गुहार लगाती है, ऐसे में निधि के उपयोग की जांच से क्यों कतराया जा रहा है। उनका कहना था कि यह कदम किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं बल्कि सच्चाई उजागर करने के लिए उठाया गया है।
वहीं, याचिकाकर्ता की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर ने तर्क दिया कि जांच का आदेश देने का अधिकार केवल न्यायपालिका के पास है, न कि राज्य सरकार के पास। उन्होंने कहा कि चूंकि एपीएमसी के संचालक मंडल में राज्य सरकार का प्रतिनिधि शामिल है, इसलिए सरकार इस तरह की जांच का आदेश देकर पक्षपात की स्थिति पैदा कर सकती है।
गौरतलब है कि विधायक कृष्णा खोपड़े ने मानसून सत्र में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए एपीएमसी में अनियमितताओं का मुद्दा उठाया था। इसके बाद सहकार, पणन और वस्त्रोद्योग विभाग ने 18 जुलाई 2025 को एसआईटी गठित करने का आदेश दिया। इस फैसले को एपीएमसी ने अदालत में चुनौती दे दी, और अब सभी की निगाहें हाई कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं।