नागपुर न्यूज डेस्क: भारत में सिकलसेल एनीमिया के इलाज को लेकर एक अहम कदम उठाया गया है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने हाइड्रोक्सीयूरिया दवा के 100 एमजी और 100 एमएल वाले ओरल सस्पेंशन के क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी दे दी है। यह ट्रायल नागपुर समेत छत्तीसगढ़ के प्रभावित इलाकों में किया जाएगा। खास बात यह है कि इस मंजूरी के साथ कंपनी को कम से कम 200 मरीजों को शामिल करना अनिवार्य किया गया है, और ट्रायल उन्हीं क्षेत्रों में होगा जहां यह बीमारी अधिक पाई जाती है।
विदर्भ क्षेत्र सिकलसेल से सबसे ज्यादा प्रभावित है, जिसमें नागपुर विभाग में अकेले 1.32 लाख मरीज हैं। हाल की स्क्रीनिंग में बड़ी संख्या में वाहक और पीड़ित मरीज पाए गए हैं—मेयो अस्पताल की जांच में 59,825 लोगों में से 4% वाहक और 181 पीड़ित मिले, जबकि मेडिकल कॉलेज की जांच में 90,908 लोगों में से 2,980 वाहक और 209 पीड़ित सामने आए। नागपुर के मेयो, मेडिकल, डागा और एम्स में इस बीमारी के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं, और डागा अस्पताल में हर साल 10,000 से अधिक गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग होती है।
वर्तमान में यह दवा 500 एमजी कैप्सूल रूप में उपलब्ध है, जो छोटे बच्चों के लिए मुश्किल है। बच्चों को देने के लिए कैप्सूल खोलकर अंदर की दवा उनकी उम्र और वजन के अनुसार दी जाती है, जो न केवल जटिल बल्कि असुविधाजनक भी है। लंबे समय से चिकित्सक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ मांग कर रहे थे कि यह दवा ओरल सस्पेंशन रूप में उपलब्ध हो, ताकि बच्चों को आसानी से दी जा सके।
महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष विंकी रुघवाणी का कहना है कि एक कंपनी का ओरल सस्पेंशन पहले से बाजार में मौजूद है, और अब दूसरी कंपनी को ट्रायल की मंजूरी मिलने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और यह दवा ज्यादा सुलभ हो सकेगी। उम्मीद है कि इस कदम से सिकलसेल एनीमिया के मरीजों को खासकर बच्चों को इलाज में बड़ी राहत मिलेगी।