नागपुर न्यूज डेस्क: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक रेप मामले में एक अहम और चौंकाने वाला फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक पिता को बरी कर दिया, जिसे पॉक्सो कोर्ट ने अपनी बेटी के साथ 7 साल तक यौन उत्पीड़न करने का दोषी ठहराया था। यह मामला लंबे समय तक चल रहे कथित उत्पीड़न का था, लेकिन हाईकोर्ट ने मामले की पुनः समीक्षा करने के बाद कहा कि केवल लड़की का बयान ही इस मामले का मुख्य आधार था और इस पर कोई अन्य ठोस सबूत नहीं थे।
हाईकोर्ट ने फैसले में एक महत्वपूर्ण पहलू पर विचार करते हुए यह माना कि लड़की ने अपने पिता के खिलाफ जो आरोप लगाए थे, उसके पीछे एक संभावित कारण हो सकता है। कोर्ट ने बताया कि पिता ने अपनी बेटी की पसंद के युवक से शादी करने का विरोध किया था, और इसके बाद लड़की ने अपने पिता पर आरोप लगाए। जज गोविंदा सनप ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में एक बेटी अपने पिता पर इस प्रकार का आरोप नहीं लगाएगी, और न ही कोई पिता अपनी बेटी का यौन उत्पीड़न करेगा।
जस्टिस सनप ने मामले में एक संभावित मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया और कहा कि पिता और बेटी के बीच असहमति और संघर्ष के कारण लड़की के मन में तनाव पैदा हो सकता था। उन्होंने यह भी कहा कि लड़की ने अपनी पसंद के युवक से शादी की थी, जो उसके पिता के विरोध के बावजूद हुआ था, और यह असहमति उसके आरोपों की वजह हो सकती है।
इससे पहले, फरवरी 2021 में पॉक्सो कोर्ट ने पिता को अपनी बेटी के साथ यौन उत्पीड़न करने के आरोप में 10 साल की सजा और 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया था। लेकिन हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि लड़की और उसका प्रेमी एक अंतरंग संबंध में थे, और यह विवाद पिता की असहमतियों से उत्पन्न हुआ। कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़की के आरोपों की सच्चाई को देखते हुए यह मामला एक झूठी रिपोर्ट का प्रतीत होता है।
हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है कि एक पिता-बेटी के रिश्ते में संघर्ष और असहमति के कारण झूठे आरोप कैसे उत्पन्न हो सकते हैं। यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि एक बेटी के द्वारा अपने पिता पर लगाए गए आरोपों की गंभीरता को केवल साक्ष्य के आधार पर ही तय किया जा सकता है।