नागपुर न्यूज डेस्क: बैल पोला के दूसरे दिन तान्हा पोल का उत्सव मनाया जा रहा है। नागपुर में इस दिन मारबत उत्सव की धूम रहती है, जहां लोग बड़ी संख्या में जमा होकर मारबत और बडग्या निकालते हैं। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है और हर साल इस दिन निभाई जाती है। मारबत और बडग्या बुराई का प्रतीक माने जाते हैं, इसलिए यह उत्सव मनाया जाता है। मारबत बनाने वाले कारागीर आज भी इस परंपरा को जारी रखते हैं और काली और पीली मारबत का निर्माण करते हैं।
शहर में तान्हा पोला के दिन मारबत फेस्टिवल मनाने के लिए काली और पीली मारबत बनाई जाती हैं, जो एक पुरानी परंपरा है। पीली मारबत की शुरुआत 1885 में की गई थी, जिसका उद्देश्य शहर में फैल रही बीमारियों से मुक्ति पाना था। उस समय बीमारियों की समस्या बढ़ गई थी और लोगों का मानना था कि मारबत बनाने से रोग दूर होते हैं। काली मारबत का निर्माण 131 साल से हो रहा है। इसका इतिहास 1881 से जुड़ा है, जब भोसले राजघराने की एक महिला ने विद्रोह किया और अंग्रेजों के साथ जा मिली, जिससे भोसले घराने पर बुरे दिन आ गए। इसी विरोध में काली मारबत का जुलूस निकालने की परंपरा शुरू हुई।
आज मारबत तैयार करके जुलूस की तरह निकाला जाता है और फिर इसे शहर से बाहर ले जाकर जलाया जाता है। ऐसा करने से बुराइयां, बीमारियां, और कुरीतियां खत्म हो जाती हैं। कहा जाता है कि काली मारबत को महाभारत काल में रावण की बहन पुतना के रूप में बनाया गया था। श्रीकृष्ण के हाथों मारे जाने के बाद, गोकुलवासियों ने काली मारबत को जलाकर गांव की सभी बुराइयां और कुप्रथाएं दूर की थीं। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
मारबत की परंपरा पुरानी है, लेकिन बच्चों ने हाल में बडग्या बनाना शुरू किया है। वे कागज, पेड़ की टहनियों और कचरे से बडग्या बनाते हैं। बड़े लोग भी बडग्या के जरिए अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। बडग्या को शहर में घुमाने के बाद जलाया जाता है। पुराने कारीगर आज भी मारबत बनाते हैं और इसके महत्व को समझाते हैं।