बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में हुए मतदान ने राज्य के चुनावी इतिहास के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। 18 जिलों की 121 सीटों पर रिकॉर्ड 64.69% मतदान दर्ज किया गया है, जो 1951 के बाद से अब तक का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। यह आंकड़ा पिछले विधानसभा चुनाव 2020 के पहले चरण (55.68%) की तुलना में 8.98% की भारी बढ़ोतरी है, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
चीफ इलेक्शन कमिश्नर (CEC) ज्ञानेश कुमार ने इस अभूतपूर्व भागीदारी को 'डेमोक्रेसी की बड़ी जीत' बताते हुए कहा कि "बिहार ने पूरे राष्ट्र को रास्ता दिखाया है।" उन्होंने चुनाव आयोग की सराहना करते हुए कहा कि 'स्पेशल समरी रिवीजन' (SIR) के कारण इलेक्टोरल रोल्स सबसे शुद्ध रहे, और 100% पोलिंग स्टेशन्स में लाइव वेबकास्टिंग से चुनाव पारदर्शी बना।
ऐतिहासिक विश्लेषण: 5% से अधिक उछाल का मतलब 'सियासी मंजर में बदलाव'
चुनावी इतिहास के आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जब भी वोटिंग प्रतिशत में 5% से ज्यादा का फेरबदल आया है, तब-तब बिहार की राजनीति में 'सत्ता का भूकंप' आया है।
| वर्ष |
वोटिंग बदलाव |
परिणाम |
ऐतिहासिक असर |
| 1967 |
+7% |
गैर-कांग्रेसी दौर की शुरुआत |
कांग्रेस का वर्चस्व टूटा, राज्य में अस्थिरता बढ़ी। |
| 1980 |
+6.8% |
कांग्रेस की धमाकेदार वापसी |
जनता पार्टी की टूट का फायदा उठाकर कांग्रेस ने अकेले सत्ता हासिल की। |
| 1990 |
+5.8% |
लालू युग की दस्तक |
जनता दल की सरकार बनी, लालू यादव CM बने। मंडल राजनीति ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया। |
| 2010 |
+7% |
महिलाओं की जोरदार भागीदारी |
नीतीश कुमार के फेवर में ट्रेंड, पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा निकलीं। |
| 2025 |
+8.98% |
अपेक्षित परिणाम (14 नवंबर) |
इतिहास के हिसाब से सत्ता परिवर्तन का संकेत। |
अगर इतिहास के इस पैटर्न को आधार मानें, तो 8% से अधिक की यह बढ़ोतरी सत्ता परिवर्तन का एक मजबूत संकेत देती है। हालांकि, मौजूदा राजनीतिक माहौल में विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं।
राजनीतिक गलियारों में दावों की बौछार
रिकॉर्ड तोड़ मतदान के बाद राजनीतिक दावों की झड़ी लग गई है:
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया है कि एनडीए (NDA) ने पहले फेज में 'मासिव लीड' हासिल की है।
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वहीं, जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा कि हाई टर्नआउट से बिहार में बदलाव आ रहा है और 14 नवंबर को नई व्यवस्था बनेगी। प्रशांत किशोर को कई विश्लेषक एक 'थर्ड फोर्स' के रूप में उभरता हुआ देख रहे हैं।
एक्सपर्ट्स की राय: नीतीश मजबूत या सत्ता परिवर्तन का खेल?
राजनीतिक विश्लेषकों की राय इस बार बंटी हुई है, जिससे नतीजों की अनिश्चितता बढ़ गई है:
| एक्सपर्ट |
मुख्य राय |
तर्क |
| पुष्यमित्र (सीनियर जर्नलिस्ट) |
नीतीश को फायदा |
महिलाओं और कोर वोटर्स की भागीदारी मजबूत, SIR से हटाए गए 9% निष्क्रिय वोटरों के कारण टर्नआउट प्रतिशत बढ़ा हुआ दिख रहा है। |
| ओमप्रकाश अश्क (पॉलिटिकल एनालिस्ट) |
जनता में नाराजगी नहीं |
1990, 1995 और 2000 में भी बंपर वोटिंग हुई थी, लेकिन सत्ता नहीं बदली थी। जनता नीतीश को हटाने की जल्दबाजी में नहीं है। |
| हेमंत कुमार (सीनियर जर्नलिस्ट) |
सत्ता बदलाव का संकेत |
एग्रेसिव वोटिंग हमेशा सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency) का संकेत होती है। अगर यह ट्रेंड आगे भी जारी रहा, तो सरकार जा सकती है। |
| प्रमोद मुकेश (सीनियर जर्नलिस्ट) |
नीतीश की वापसी संभव |
नीतीश की महिला केंद्रित योजनाएं (10 हजार की किस्त) कामयाब रही हैं। प्रशांत किशोर भविष्य में तीसरा पक्ष बन सकते हैं। |
मतदान बढ़ने की प्रमुख वजहें
रिकॉर्ड टर्नआउट के पीछे कई सामाजिक और राजनीतिक कारक जिम्मेदार माने जा रहे हैं:
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महिला केंद्रित वादे: NDA (1.21 करोड़ महिलाओं को ₹10 हजार) और तेजस्वी यादव (₹30 हजार सालाना) के लोक लुभावन वादों ने महिलाओं को भारी संख्या में मतदान के लिए उत्साहित किया।
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SIR (स्पेशल समरी रिवीजन) का असर: 65 लाख मृत या डुप्लिकेट वोटरों के नाम हटाए जाने से 'शुद्ध' इलेक्टोरल रोल्स के कारण वोटिंग प्रतिशत बढ़ा हुआ दिख रहा है।
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छठ पर्व का प्रभाव: छठ पर्व के कारण बाहर से आए लोग रुके रहे और पार्टियों की अपील पर उन्होंने वोट डाला, जो 2010 के बाद पहली बार हुआ है।
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रोजगार की उम्मीद: एनडीए और महागठबंधन दोनों के घोषणापत्र में बड़े रोजगार के वादे थे, जिसने युवाओं की भागीदारी बढ़ाई।
चुनावी हिंसा और समीकरण
पहले चरण का चुनाव मुख्य रूप से शांतिपूर्ण रहा, लेकिन कुछ हिंसक घटनाएं भी सुर्खियां बनीं:
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छपरा में मांझी विधायक सत्येंद्र यादव की गाड़ी पर हमला हुआ।
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डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा से बदतमीजी और नोक-झोंक की घटना हुई।
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डिप्टी सीएम के काफिले पर गोबर फेंकने की घटना भी सामने आई, जिससे तनाव बढ़ा।
वोटर रोल में हुए बड़े बदलाव (SIR) ने चुनावी समीकरणों को भी प्रभावित किया है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे पिछड़े और अति पिछड़े वोटर्स में जागरूकता बढ़ी है। अब 14 नवंबर को मतगणना का इंतजार है, जो तय करेगा कि बिहार की जनता ने इस ऐतिहासिक मतदान के जरिए नीतीश कुमार की वापसी पर मुहर लगाई है, या सत्ता परिवर्तन का रास्ता साफ कर दिया है।