दिल्ली हाईकोर्ट ने यमुना खादर (Floodplain) क्षेत्र के संरक्षण और अवैध अतिक्रमण को लेकर एक अत्यंत कड़ा और महत्वपूर्ण रुख अपनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि आस्था या अंतिम संस्कार के नाम पर पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील यमुना के मैदानी इलाकों में अवैध निर्माण की अनुमति कतई नहीं दी जा सकती।
यमुना बाढ़ क्षेत्र: घर या शेड बनाने पर पूर्ण प्रतिबंध
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने नौ गाजा पीर दरगाह (Nau Gaza Peer Dargah) के पास हो रहे अवैध निर्माण पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यमुना का बाढ़ क्षेत्र दिल्ली के पर्यावरण के लिए फेफड़ों के समान है और कब्रिस्तान के बहाने वहां पक्के घर, मकान या शेड बनाना कानूनन गलत है।
कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि धार्मिक स्थलों की आड़ में अक्सर सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किया जाता है, जो बाद में एक बड़ी बस्ती का रूप ले लेते हैं। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि दरगाह के पास करीब 100 से अधिक परिवार अवैध रूप से रह रहे हैं और वहां लगातार निर्माण कार्य जारी है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: "तस्वीरें परेशान करने वाली हैं"
सुनवाई के दौरान जब दरगाह और कब्रिस्तान की तस्वीरें बेंच के सामने रखी गईं, तो कोर्ट ने पाया कि वहां बड़े पैमाने पर पेड़ों को उखाड़ा गया है और जमीन का स्वरूप बदला जा रहा है। बेंच ने टिप्पणी की, "तस्वीरें काफी परेशान करने वाली स्थिति का खुलासा करती हैं। यह साफ है कि जमीन पर लगातार निर्माण किया जा रहा है।"
इस पर कार्रवाई करते हुए कोर्ट ने निम्नलिखित कड़े निर्देश जारी किए:
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बाड़ लगाने का निर्देश: दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और भूमि एवं विकास कार्यालय (L&DO) को एक सप्ताह के भीतर पूरे क्षेत्र की बाड़बंदी (Fencing) करने का आदेश दिया गया है।
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रहने पर रोक: दरगाह की देखभाल करने वाले सहित किसी भी व्यक्ति को नौ गाजा पीर दरगाह से सटी जमीन पर रहने की अनुमति नहीं होगी। सभी कब्जाधारियों को 10 जनवरी तक अपना सामान हटाकर जगह खाली करने को कहा गया है।
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दफनाने के नियम: यदि किसी शव को दफनाना है, तो वह केवल बाड़ के भीतर तय क्षेत्र में ही होगा। दफनाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद किसी को भी वहां रुकने या ठहरने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
DDA और L&DO की जिम्मेदारी
अदालत ने सरकारी एजेंसियों के ढुलमुल रवैये पर भी नजर रखी है। कोर्ट ने डीडीए और एलएंडडीओ को निर्देश दिया है कि वे रिकॉर्ड का गहराई से निरीक्षण करें और जमीन की वास्तविक स्थिति पर एक संयुक्त हलफनामा दाखिल करें। 27 जनवरी को होने वाली अगली सुनवाई तक यह सुनिश्चित करना होगा कि क्षेत्र में कोई भी नया ईंट-पत्थर न रखा जाए।
निष्कर्ष: पर्यावरण और कानून का संतुलन
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला यमुना को बचाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह आदेश न केवल अतिक्रमणकारियों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि सरकारी विभागों को भी उनकी जिम्मेदारी याद दिलाता है। यमुना के बाढ़ क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त रखना दिल्ली के गिरते भूजल स्तर और भविष्य में आने वाली बाढ़ की विभीषिका को रोकने के लिए अनिवार्य है।