नागपुर न्यूज डेस्क: गढ़चिरौली की रहने वाली 30 वर्षीय पार्वती शेडमाके की रिहाई का दिन उनके और परिवार के लिए आज़ादी नहीं, बल्कि एक और गिरफ्तारी का दिन बन गया। छह साल जेल में बिताने और पांचों मामलों में बरी होने के बाद जब वे नागपुर सेंट्रल जेल से बाहर निकलीं, तो बाहर उनका पति बिरजू पोंगोटी स्वागत के लिए खड़ा था। लेकिन जैसे ही पार्वती बाहर आईं, सादे कपड़ों में मौजूद पुलिसकर्मियों की एक टीम बिना किसी वॉरंट या नोटिस के उन्हें जबरन जीप में बिठाकर ले गई। परिवार को भी इस कार्रवाई की कोई जानकारी नहीं दी गई।
पार्वती, जो माडिया समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, को 2018 में कथित माओवादी संबंधों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन पर पाँच केस चले, जिनमें चार में वे बरी हुईं और एक में दोषी ठहराई गईं। लेकिन इस साल बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने उन्हें उस केस में भी बरी कर दिया। उनके पति बिरजू, जो खुद भी 13 साल जेल में रह चुके हैं, का कहना है कि उन्होंने पुलिस से गिरफ्तारी का कोई दस्तावेज़ दिखाने को कहा, लेकिन पुलिस ने इनकार कर दिया।
जब पार्वती को पुलिस जीप में ले जाया गया, तो उनके वकील आकाश सोर्डे ने तुरंत नागपुर के धंतोली थाने में जाकर शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि पुलिस ने ‘अपहरण’ की एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया। सोर्डे ने कहा कि अगर पार्वती शाम तक नहीं लौटीं, तो वे हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल करेंगे। इसके बाद अचानक खबर आई कि पुलिस उन्हें सिर्फ़ “भविष्य में नक्सली गतिविधियों से दूर रहने की चेतावनी देने” के लिए पूछताछ कर रही है।
रात करीब 10:30 बजे बिरजू को चंद्रपुर के बंगाली कैंप बुलाया गया, जहां पुलिस पार्वती के साथ थी। वहीं उनका बयान दर्ज किया गया और बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। गढ़चिरौली पुलिस अधिकारी अमर मोहिते ने दावा किया कि शेडमाके के खिलाफ पुराने गैर-जमानती वॉरंट के चलते पूछताछ ज़रूरी थी। हालांकि, बिना वॉरंट हिरासत में लेना कानूनी रूप से गलत माना जाता है और यह सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन है।