मुंबई, 28 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कोविड-19 के दौरान जान गंवाने वाले निजी डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को सरकारी बीमा योजना का लाभ देने से जुड़े मामले पर सुनवाई की। अदालत ने कहा कि अगर न्यायपालिका डॉक्टरों के साथ खड़ी नहीं होगी, तो समाज इसे कभी माफ नहीं करेगा। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि बीमा कंपनियां वैध दावों का भुगतान करें। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह सोच गलत है कि निजी डॉक्टर केवल मुनाफे के लिए काम करते हैं। उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान डॉक्टरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, इसलिए उनके परिवारों को न्याय मिलना जरूरी है। इस मामले पर अदालत ने फिलहाल फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह याचिका प्रदीप अरोड़ा और अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के 9 मार्च 2021 के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि निजी अस्पतालों के डॉक्टरों या कर्मचारियों को बीमा का लाभ तभी मिलेगा जब सरकार ने उनकी सेवाएं आधिकारिक रूप से ली हों।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (PMGKP) के अलावा क्या ऐसी और बीमा योजनाएं हैं जिनसे निजी स्वास्थ्यकर्मियों को भी लाभ मिल सके। अदालत ने कहा कि वह एक ऐसा दिशानिर्देश तय करेगी, जिसके आधार पर बीमा कंपनियां भविष्य में ऐसे मामलों में निर्णय लेंगी। मामला किरण भास्कर सुर्गडे से भी जुड़ा है, जिन्होंने कोविड महामारी के दौरान अपने पति को खो दिया था। उनके पति ठाणे में एक निजी क्लीनिक चलाते थे, लेकिन बीमा कंपनी ने दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनका क्लीनिक मान्यता प्राप्त कोविड अस्पताल नहीं था। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज मार्च 2020 में शुरू किया गया था। इस योजना के तहत कोविड ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के परिवार को 50 लाख रुपए तक का बीमा कवर देने का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट अब यह तय करेगा कि क्या निजी डॉक्टरों के परिवारों को भी इस योजना का लाभ मिल सकता है।