ईरान में पाँच साल के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की गई है। सरकार के इस कदम से देश में एक बार फिर से हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आशंका गहराने लगी है, क्योंकि ईरान में पेट्रोल की कीमत बढ़ाना हमेशा से ही राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता का कारण रहा है।
पेट्रोल की नई मूल्य प्रणाली
ईरान में नई मूल्य प्रणाली के तहत पेट्रोल अब तीन अलग-अलग दरों पर मिलेगा:
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शुरुआती 60 लीटर: हर महीने 15,000 रियाल (लगभग 1.25 सेंट) प्रति लीटर पर मिलेगा।
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अगले 100 लीटर: 30,000 रियाल (लगभग 2.5 सेंट) प्रति लीटर पर मिलेंगे।
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इसके बाद खरीदा गया पेट्रोल: 50,000 रियाल (लगभग 4 सेंट) प्रति लीटर की नई दर पर मिलेगा।
तेल मंत्री मोहसेन पाकनेजाद ने कहा कि यह कदम ईंधन की खपत की प्रवृत्ति बदलने की शुरुआत है। सरकार हर तीन महीने में कीमतों की समीक्षा करती है, और भविष्य में और अधिक वृद्धि की संभावना है।
कीमत वृद्धि पर हिंसक विरोध का इतिहास
ईरान में सस्ता पेट्रोल पीढ़ियों से जनता का अधिकार मानी जाती रही है, और जब भी कीमतों में वृद्धि हुई है, उसका कड़ा विरोध हुआ है:
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1964: टैक्सी चालकों की हड़ताल
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2007: फ्यूल राशनिंग सिस्टम लागू
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2007 में ईरान में पहली बार फ्यूल राशनिंग सिस्टम लागू किया गया।
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इस व्यवस्था के तहत सरकार हर व्यक्ति या वाहन को सीमित मात्रा में सब्सिडी वाला ईंधन देती है, और तय सीमा से ज़्यादा ईंधन लेने पर ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ती है।
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इस निर्णय के बाद देश में आगजनी और हिंसा हुई थी।
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2019: कीमतों में 50% वृद्धि और बड़े पैमाने पर हिंसा
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सरकार ने अचानक पेट्रोल की कीमतों को 50% तक बढ़ा दिया।
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इसके विरोध में तेहरान, मशहद, अहवाज और सिरजान समेत कई शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए।
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इन विरोध प्रदर्शनों में 300 से ज़्यादा लोग मारे गए थे।
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सुरक्षा बलों ने 100 से अधिक शहरों और कस्बों में प्रदर्शनकारियों पर कड़ी कार्रवाई की, जबकि प्रदर्शनकारियों ने कुछ गैस स्टेशन और बैंक जला दिए थे।
ईरानी अर्थव्यवस्था पर दबाव
ईरान दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा एनर्जी सब्सिडी देने वाला देश है (2022 में इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी - IEA के अनुसार)। ईरान की तेल सब्सिडी उस साल $52 अरब डॉलर आंकी गई थी।
ईरान में कुल ढाई करोड़ वाहन हैं, जिनमें लगभग 80 लाख लोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए टैक्सी या कैब चलाते हैं। सस्ती गैसोलीन इन लोगों के लिए रोज़गार के मौके पैदा करती है। लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि सब्सिडी ने बजट घाटे को कम नहीं किया है और इससे महंगाई बढ़ी है। 2009 के बाद गैसोलीन की कीमत 15 गुना बढ़ चुकी है।
पेट्रोल की कीमतों में हालिया वृद्धि से एक बार फिर देश में राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक असंतोष बढ़ने की आशंका है।