नागपुर न्यूज डेस्क: नक्सल प्रभावित और आदिवासी इलाकों में सेवा देने वाले कर्मचारियों के परिवारों को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने शासन के स्पष्ट नियमों के बावजूद अतिरिक्त मकान किराया भत्ता (HRA) नहीं देने पर सख्त रुख अपनाते हुए तीन विधवा महिलाओं के पक्ष में अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इसे प्रशासन की लापरवाही और अन्यायपूर्ण रवैया माना है।
यह मामला महाराष्ट्र के यवतमाल जिले की घाटंजी तहसील से जुड़ा है, जो नक्सल प्रभावित और आदिवासी क्षेत्र में आती है। यहां कार्यरत रहे कर्मचारियों की तीन विधवाओं ने हाई कोर्ट का रुख किया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि शासन के 6 अगस्त 2002 के निर्णय के अनुसार ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों को अतिरिक्त मकान किराया भत्ता दिया जाना अनिवार्य है, लेकिन उनके मामलों में इसका लाभ नहीं दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने पहले जिला परिषद यवतमाल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी से इस संबंध में गुहार लगाई थी, लेकिन लंबे समय तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद एडवोकेट अमोल चाकोतकर के माध्यम से उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट में दलील दी गई कि जिला परिषद जानबूझकर शासनादेश का पालन नहीं कर रही है, जबकि इससे पहले भी ऐसे मामलों में अदालत कर्मचारियों के पक्ष में आदेश दे चुकी है।
न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति रजनीश व्यास की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जिला परिषद यवतमाल को निर्देश दिया कि फैसले की प्रति मिलने के 10 सप्ताह के भीतर सभी जरूरी प्रक्रियाएं पूरी कर याचिकाकर्ताओं को लाभ दिया जाए। कोर्ट के इस फैसले से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सेवा देने वाले कर्मचारियों के परिवारों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।