शिव मंदिर पर दागे गोले, थाई-कंबोडिया सीमा पर बने यूनेस्को विश्व धरोहर को कितना पहुंचा नुकसान?

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Posted On:Saturday, July 26, 2025

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद एक लंबे समय से जारी तनावपूर्ण स्थिति है, जो अब युद्ध के रूप में सामने आ रहा है। इस विवाद का केंद्र बिंदु प्रीह विहियर मंदिर है, जिसे हिंदू धर्म के भगवान शिव का मंदिर माना जाता है और यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है। दोनों देशों के बीच इस मंदिर और इसके आस-पास के इलाके को लेकर विवाद वर्षों से चल रहा है, लेकिन अब यह विवाद हिंसक संघर्ष की शक्ल ले चुका है।


प्रीह विहियर मंदिर पर विवाद का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

प्रीह विहियर मंदिर 11वीं सदी में खमेर साम्राज्य के राजा यशोवर्मन प्रथम के शासनकाल के दौरान बनवाया गया था। यह मंदिर डांग्रेक पर्वत श्रृंखला की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और इसकी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्वता दोनों ही देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। कंबोडिया इस मंदिर को अपनी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा मानता है, जबकि थाईलैंड इस इलाके पर भी अपना दावा करता है।

यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है, जिससे इसकी सुरक्षा और संरक्षण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनिश्चित हो। लेकिन दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र की सीमा रेखा को लेकर विवाद अभी तक पूरी तरह से सुलझ नहीं पाया है।


कंबोडिया का आरोप: मंदिर को हुआ भारी नुकसान

हाल ही के युद्धकालीन संघर्ष में कंबोडिया ने आरोप लगाया है कि थाईलैंड की सेना ने प्रीह विहियर मंदिर पर एफ-16 लड़ाकू विमानों से बमबारी कर इस ऐतिहासिक स्थल को जानबूझकर नुकसान पहुंचाया है। कंबोडिया के संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि बमबारी से मंदिर के कई हिस्सों को भारी क्षति पहुंची है। मंत्रालय का यह भी कहना है कि यह मंदिर कंबोडियाई संस्कृति का प्रतीक है और इसकी रक्षा करना उनका कर्तव्य है।

कंबोडिया ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इस हमले की निंदा करते हुए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत न्याय की मांग की है। उनका कहना है कि थाईलैंड की ये कार्रवाई विश्व धरोहर स्थल की सुरक्षा के खिलाफ है और इस प्रकार का हिंसक संघर्ष दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के प्रयासों के लिए बाधक है।


थाईलैंड का खंडन और सेना प्रवक्ता की प्रतिक्रिया

थाईलैंड की सेना ने कंबोडिया के आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया है। सेना प्रवक्ता ने स्पष्ट किया है कि थाईलैंड की सेना ने मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। उनका कहना है कि थाईलैंड की सेना केवल कंबोडियाई सेना को निशाना बना रही है, न कि मंदिर को या वहां के नागरिकों को।

उन्होंने यह भी कहा कि कंबोडिया इस विवाद को भड़काने और इसे किसी और रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है, ताकि थाईलैंड की कार्रवाईयों को गलत ठहराया जा सके। थाईलैंड अपनी सीमा की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाता रहेगा और इस संबंध में किसी भी समझौते के लिए तैयार है, लेकिन बिना शर्त युद्धविराम को स्वीकार नहीं करता।


सीमावर्ती इलाकों में जारी संघर्ष और उसकी तबाही

दोनों देशों की सेनाएं प्रीह विहियर मंदिर और उसके आस-पास के 4.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए लगातार भिड़ रही हैं। इस संघर्ष में अब तक कई सैनिक और नागरिक मारे जा चुके हैं, साथ ही काफी संख्या में लोग विस्थापित भी हुए हैं। हिंसक मुठभेड़ों के कारण आसपास के नेशनल पार्कों और पर्यावरणीय स्थलों को भी भारी नुकसान पहुंचा है।

इस तरह के युद्धकालीन हालात से न केवल सांस्कृतिक धरोहरों को खतरा है, बल्कि स्थानीय लोगों की सुरक्षा और जीवन भी दांव पर है। दोनों देशों ने अभी तक अपने-अपने दृष्टिकोण पर अड़े रहने का फैसला किया है, जिससे यह विवाद सुलझने की बजाय और भी जटिल हो गया है।


विवाद के पीछे का इतिहास और न्यायालय का फैसला

इस सीमा विवाद की जड़ें काफी पुरानी हैं। 1959 में कंबोडिया ने इस विवाद को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) तक पहुंचाया था। 1962 में ICJ ने फैसला सुनाया था कि प्रीह विहियर मंदिर कंबोडिया के क्षेत्र में आता है, जिसे थाईलैंड ने स्वीकार किया था।

हालांकि, मंदिर के आसपास के इलाकों को लेकर विवाद बरकरार रहा। 2008 में कंबोडिया ने इस मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दिलाने का प्रयास किया, जिससे थाईलैंड नाराज हो गया और इसके बाद दोनों देशों के बीच फिर से सैन्य झड़पें शुरू हो गईं। 2011 की झड़पों में भी कई लोग मारे गए थे।


निष्कर्ष

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच प्रीह विहियर मंदिर को लेकर जारी यह सीमा विवाद अब एक गंभीर युद्ध की स्थिति में पहुंच चुका है। दोनों पक्षों के दावे और आरोपों के बीच इस ऐतिहासिक मंदिर और आसपास के क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी जटिल हो गई है।

यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस विश्व धरोहर की सुरक्षा की अपील करती रही हैं, लेकिन क्षेत्रीय राजनीति और सैन्य टकराव के कारण यह मंदिर आज खतरे में है। इस विवाद का समाधान द्विपक्षीय वार्ताओं और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के माध्यम से ही संभव दिखता है, जिससे न केवल इस ऐतिहासिक स्थल की रक्षा हो सके, बल्कि दोनों देशों के बीच स्थायी शांति भी स्थापित हो स


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