26 जुलाई 2025 की देर रात, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की एक अहम बैठक हुई, जिसे कंबोडिया के अनुरोध पर बुलाया गया था। इस बैठक में कंबोडिया ने थाईलैंड के साथ जारी सीमा विवाद में तत्काल और बिना शर्त युद्धविराम की मांग की। हालांकि, थाईलैंड ने इस मांग को ठुकराते हुए एक आधिकारिक पत्र सौंपा, जिसमें आरोप लगाया गया कि इस संघर्ष की शुरुआत कंबोडिया ने ही की थी। थाईलैंड ने यह भी स्पष्ट किया कि वे तीसरे पक्ष की मध्यस्थता जैसे अमेरिका, चीन या मलेशिया को स्वीकार नहीं करते और विवाद का समाधान केवल द्विपक्षीय बातचीत से ही संभव है।
विवाद की पृष्ठभूमि: क्यों छिड़ा यह संघर्ष?
कंबोडिया और थाईलैंड के बीच यह सीमा विवाद फिर से जुलाई 2025 में उभर कर सामने आया। विवाद का केंद्रबिंदु है प्रीह विहार मंदिर और उसके आस-पास का लगभग 4.6 वर्ग किलोमीटर का इलाका। यह मंदिर 9वीं से 12वीं सदी का प्राचीन हिंदू-बौद्ध धार्मिक स्थल है, जो डांग्रेक पर्वत श्रृंखला की सीमा पर स्थित है।
सन् 1907 में फ्रांस की उपस्थिति के दौरान फ्रेंको-सियामी संधि हुई थी, जिसमें फ्रांसीसी इंडोचाइना (जिसमें कंबोडिया शामिल था) और सियाम (अब थाईलैंड) के बीच सीमा का निर्धारण किया गया। इस संधि के मानचित्र में प्रीह विहार मंदिर को कंबोडिया की सीमा में दिखाया गया था। हालांकि, थाईलैंड का दावा है कि यह मंदिर और आसपास का इलाका ऐतिहासिक रूप से थाईलैंड का हिस्सा रहा है।
अदालत में भी पहुंचा विवाद
इस सीमा विवाद को कंबोडिया ने सन् 1959 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में उठाया था। तीन साल की सुनवाई के बाद, 1962 में आईसीजे ने फैसला सुनाया कि मंदिर कंबोडिया के क्षेत्र में आता है। इस फैसले को थाईलैंड ने स्वीकार कर लिया, लेकिन मंदिर के आसपास की जमीन को लेकर विवाद समाप्त नहीं हुआ।
2008 में कंबोडिया ने मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर के रूप में नामांकित करने का प्रयास किया, जिस पर थाईलैंड ने विरोध जताया। इसके बाद दोनों देशों के बीच सैन्य झड़पें भी हुईं, जिनमें 2011 में 42 लोग मारे गए थे।
ताजा विवाद की वजह
2025 के मई महीने में थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर हुई झड़प में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई थी। जुलाई में थाईलैंड में एक बारूदी सुरंग में विस्फोट हुआ, जिसमें सैनिक घायल हुए। थाईलैंड ने कंबोडिया पर आरोप लगाया कि उसने नई बारूदी सुरंगें बिछाई हैं, जबकि कंबोडिया ने इसे पुराने खमेर रूज युग की पुरानी सुरंगों का विस्फोट बताया।
24 जुलाई को दोनों देशों ने एक-दूसरे पर गोलीबारी का आरोप लगाया। कंबोडिया का दावा था कि थाईलैंड के सैनिकों ने हमला किया, जबकि थाईलैंड ने आरोप लगाया कि कंबोडिया के सैनिक सीमा में घुसपैठ कर रहे हैं।
हमले और जवाबी कार्रवाई
थाईलैंड ने F-16 लड़ाकू विमानों से कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए, जबकि कंबोडिया ने BM-21 रॉकेट लॉन्चर से जवाबी हमला किया। इस हिंसा में अब तक लगभग 25 लोगों की जान जा चुकी है, और करीब 1.3 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं।
थाईलैंड के दो सीमा-नजदीकी राज्यों में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया है। साथ ही थाईलैंड ने छह नेशनल पार्क भी बंद कर दिए हैं। कई देशों ने अपने नागरिकों को थाईलैंड और कंबोडिया की यात्रा से बचने की सलाह दी है। दोनों देशों ने अपने राजनयिक संबंध भी कम कर दिए हैं; थाईलैंड ने कंबोडियाई राजदूत को निष्कासित किया है, और कंबोडिया ने अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक
कंबोडिया के अनुरोध पर यूएनएससी ने इस गंभीर विवाद पर बैठक की। बैठक में कंबोडिया ने तत्काल युद्धविराम की मांग की, जिससे आम लोगों को राहत मिले और हिंसा रोकी जा सके। लेकिन थाईलैंड ने युद्धविराम को अस्वीकार करते हुए आरोप लगाया कि कंबोडिया ने ही संघर्ष शुरू किया था।
थाईलैंड ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया, और कहा कि विवाद का समाधान केवल द्विपक्षीय बातचीत और संयुक्त सीमा आयोग (JBC) के जरिए ही संभव है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मध्यस्थता के प्रयास
चीन ने इस विवाद में मध्यस्थता करने का प्रस्ताव रखा है और दोनों देशों को बातचीत के लिए प्रेरित किया है। आसियान के अन्य सदस्य देश भी शांति स्थापना के लिए सक्रिय हैं। वहीं, थाईलैंड के अमेरिका के साथ करीबी संबंध इस विवाद को भू-राजनीतिक आयाम दे रहे हैं।
कंबोडिया ने विवाद को पुनः अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में ले जाने का फैसला किया है, जबकि थाईलैंड द्विपक्षीय वार्ता पर जोर दे रहा है।
निष्कर्ष
कंबोडिया और थाईलैंड के बीच यह सीमा विवाद इतिहास और भू-राजनीति का जटिल मिश्रण है, जिसमें सांस्कृतिक विरासत, राष्ट्रीय गर्व और क्षेत्रीय सुरक्षा सभी जुड़े हैं। दोनों देशों के बीच संघर्ष अब एक गंभीर मानवीय संकट में बदलता जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका इस विवाद के शांतिपूर्ण समाधान में अहम होगी। दोनों पक्षों को बातचीत और समझौते के रास्ते खोजने होंगे ताकि क्षेत्र में स्थिरता और शांति स्थापित हो सके, और हजारों विस्थापित लोगों को वापस उनके घर लौटने का मौका मिले।